मेरी जिंदगी,
आज जब शाम हो चली है...बादलों ने अपना रुख मोड़ लिया है...चारों ओर काली घटाएं छा गयी हैं...और इस वीराने में तुम्हारी याद ने दस्तक दे दी है....हाँ एक यही तो है जो हरदम मेरे साथ रहती हैं...तुम्हारी यादें...तुम्हारी बातें...जो हँसाती भी है और आँखों में आंसू भी दे जाती हैं...तुम्हारा मुझसे रूठ कर चले जाना ठीक साँसों के बिना जी ना पाने जैसा है....जब तुम इतने दिनों बाद मुझसे रूठ कर गयी तो हर पल ही ये एहसास होता है कि तुम्हारे बिना जीना मुमकिन ही नहीं...
इस घर में कुछ भी ऐसा नहीं जिससे तुम्हारी याद ना जुडी हो...वो बाहर का लॉन, वो कॉफी का कप, वो सोफा, वो बिस्तर, रसोई...हर जगह, हर चीज़ पर तुम्हारा जैसे स्पर्श है...जो हर घडी तुम्हारी याद दिलाता है...तुम्हारी अलमारी, तुम्हारी चूड़ियाँ , ठीक वैसे की वैसी ही हैं...मैंने उन्हें वैसा ही रख छोडा है...उनसे ढेर सारी यादें जो जुडी हैं...वो तुम्हारा मेरे सीने पर सिर रखकर ढेर सारी बातें करना...अपने अरमानों, अपने सपनो की बातें करना...मेरा तुम्हारे बालों को सहलाना...सब कुछ याद आता है...कहने को तो अभी चन्द रोज़ हुए हैं लेकिन ये एक युग बीतने जैसा है
जब रसोई में तुम मेरे लिए पूरे मन से कुछ पकाया करती थी और फिर पीछे से जाकर जब मैं तुम्हें अपनी बाहों में भर लेता और तुम्हारा कहना कि देखो वो जल जायेगा....मैं तुम्हें आटा लगा दूँगी....वो लिए हुए ढेर सारे चुम्बन....वो तुम्हारा कोमल स्पर्श....तुम्हारे चले जाने पर सब रह रहकर याद आते हैं
बाहरी लॉन में बैठ तुम्हारे साथ कॉफी के घूट के साथ की वो ढेर सारी गपशप...वो साथ मैं लुडो खेलना और मुझे हरा के तुम्हरा खुश होना , वो तुम्हारा मुस्कुराना...बरसती हुई बूंदों तले तुम्हारा भीगना...मुझे अपने पास खींच लेना...दूर के सुहाने नजारों को दिखाना...सब जैसे मेरे ख्यालों में, यादों में बस गया है...और एक तुम हो जो दूर जाकर बैठी हो....हाँ गलती तो मेरी ही है.....जो तुम्हें जाने दिया ...
तुम गयी हो तब से एक पल के लिए भी मुझे राहत नहीं...न कॉफी के घूट हैं...न कोमल स्पर्श...ना वो ढेर सारी बातें...ना गपशप...ना वो अब नजारे अच्छे लगते.....
तुम हो कि बस चली गयी रूठकर मुझसे...जानती हो कि मुझे ठीक से मनाना भी नहीं आता...आज जब तुम मेरे पास नहीं हो तो लगता है कि कहीं ये साँसे भी साथ ना छोड़ जाएँ...बस एक ही बात जानी और समझी है कि तुम नहीं तो कुछ भी नहीं....तुम्हारे बिना जीना मुमकिन नहीं...
हाँ अब इस अधूरेपन के साथ जीना मुमकिन नहीं...इस एहसास के साथ कि तुम अपने इस चाहने वाले नादान, नासमझ, बुद्धू को माफ़ करोगी और जल्द से जल्द वापस आकर तुम्हारे अपने सब कुछ को संभालोगी...इस वीराने को ख़त्म करोगी और मुझे एक और मौका दोगी...ताकि मैं तुम्हें जता सकूं कि इस दिल में तुम्हारे लिए कितना प्यार है...मेरी जिंदगी में तुम क्या हो....मेरे लिए तुम क्या हो...मैं बाहर देख रहा हूँ बारिश की बूंदे अपने बाहरी लॉन की दीवार को भिगो रही हैं...और मेरे आँसुओं की बारिश इस ख़त को....
"तुम्हारा अपना...तुम बिन अधूरा"
आज जब शाम हो चली है...बादलों ने अपना रुख मोड़ लिया है...चारों ओर काली घटाएं छा गयी हैं...और इस वीराने में तुम्हारी याद ने दस्तक दे दी है....हाँ एक यही तो है जो हरदम मेरे साथ रहती हैं...तुम्हारी यादें...तुम्हारी बातें...जो हँसाती भी है और आँखों में आंसू भी दे जाती हैं...तुम्हारा मुझसे रूठ कर चले जाना ठीक साँसों के बिना जी ना पाने जैसा है....जब तुम इतने दिनों बाद मुझसे रूठ कर गयी तो हर पल ही ये एहसास होता है कि तुम्हारे बिना जीना मुमकिन ही नहीं...
इस घर में कुछ भी ऐसा नहीं जिससे तुम्हारी याद ना जुडी हो...वो बाहर का लॉन, वो कॉफी का कप, वो सोफा, वो बिस्तर, रसोई...हर जगह, हर चीज़ पर तुम्हारा जैसे स्पर्श है...जो हर घडी तुम्हारी याद दिलाता है...तुम्हारी अलमारी, तुम्हारी चूड़ियाँ , ठीक वैसे की वैसी ही हैं...मैंने उन्हें वैसा ही रख छोडा है...उनसे ढेर सारी यादें जो जुडी हैं...वो तुम्हारा मेरे सीने पर सिर रखकर ढेर सारी बातें करना...अपने अरमानों, अपने सपनो की बातें करना...मेरा तुम्हारे बालों को सहलाना...सब कुछ याद आता है...कहने को तो अभी चन्द रोज़ हुए हैं लेकिन ये एक युग बीतने जैसा है
जब रसोई में तुम मेरे लिए पूरे मन से कुछ पकाया करती थी और फिर पीछे से जाकर जब मैं तुम्हें अपनी बाहों में भर लेता और तुम्हारा कहना कि देखो वो जल जायेगा....मैं तुम्हें आटा लगा दूँगी....वो लिए हुए ढेर सारे चुम्बन....वो तुम्हारा कोमल स्पर्श....तुम्हारे चले जाने पर सब रह रहकर याद आते हैं
बाहरी लॉन में बैठ तुम्हारे साथ कॉफी के घूट के साथ की वो ढेर सारी गपशप...वो साथ मैं लुडो खेलना और मुझे हरा के तुम्हरा खुश होना , वो तुम्हारा मुस्कुराना...बरसती हुई बूंदों तले तुम्हारा भीगना...मुझे अपने पास खींच लेना...दूर के सुहाने नजारों को दिखाना...सब जैसे मेरे ख्यालों में, यादों में बस गया है...और एक तुम हो जो दूर जाकर बैठी हो....हाँ गलती तो मेरी ही है.....जो तुम्हें जाने दिया ...
तुम गयी हो तब से एक पल के लिए भी मुझे राहत नहीं...न कॉफी के घूट हैं...न कोमल स्पर्श...ना वो ढेर सारी बातें...ना गपशप...ना वो अब नजारे अच्छे लगते.....
तुम हो कि बस चली गयी रूठकर मुझसे...जानती हो कि मुझे ठीक से मनाना भी नहीं आता...आज जब तुम मेरे पास नहीं हो तो लगता है कि कहीं ये साँसे भी साथ ना छोड़ जाएँ...बस एक ही बात जानी और समझी है कि तुम नहीं तो कुछ भी नहीं....तुम्हारे बिना जीना मुमकिन नहीं...
हाँ अब इस अधूरेपन के साथ जीना मुमकिन नहीं...इस एहसास के साथ कि तुम अपने इस चाहने वाले नादान, नासमझ, बुद्धू को माफ़ करोगी और जल्द से जल्द वापस आकर तुम्हारे अपने सब कुछ को संभालोगी...इस वीराने को ख़त्म करोगी और मुझे एक और मौका दोगी...ताकि मैं तुम्हें जता सकूं कि इस दिल में तुम्हारे लिए कितना प्यार है...मेरी जिंदगी में तुम क्या हो....मेरे लिए तुम क्या हो...मैं बाहर देख रहा हूँ बारिश की बूंदे अपने बाहरी लॉन की दीवार को भिगो रही हैं...और मेरे आँसुओं की बारिश इस ख़त को....
"तुम्हारा अपना...तुम बिन अधूरा"
No comments:
Post a Comment