Friday, September 2, 2011

दो नैना और इक कहानी

दो नैना और इक कहानी


 याद है तुम्हें जब तुमने एक बार कहा था कि कहीं ऐसा न हो कि एक दिन हमें एक दूसरे को देखने के लिए आँखें तरस जाएँगी...पता नहीं क्या सोचकर तुमने ये कहा था...शायद तुम्हें एहसास हो चला था कि ये जिंदगी हमारी झोली में क्या डालने वाली है...शायद ये एक एहसास ही तो था जो हमे जोड़े रहा...जब तुम कुछ पूँछा करती थीं...तो मैं खामोशी से मुस्कुरा दिया करता था...और आज देखो मेरे पास कहने को इतना कुछ है...पर वो मुस्कुराती हुई आँखें नहीं जो मेरी तरफ देखा करती थीं...कुछ भी बड़े प्यार से सुनने के लिए


                                                                                   



मैं कहना चाहता हूँ कि मैं तुम्हें बहुत याद करता हूँ...कि जब तुम हवा में अपना दुपट्टा उड़ाया करती थीं...तो तुम बहुत अच्छी लगती थीं...कहना चाहता हूँ कि जब तुम खिलखिला के हँसती थीं तो तुम्हारी हँसी मेरे दिल में असर करती थी...और हर बार मैं यही ख्वाहिश पैदा करता था कि तुम यूँ ही जिंदगी भर मेरे साथ खिलखिला कर हंसती रहो...कहना चाहता हूँ कि जब तुम बच्चों सी हरकतें करती थीं तो तुम पर बहुत प्यार आता था


कहना चाहता हूँ कि तुम्हारी आइसक्रीम खाने की जिद मुझे बहुत पसंद थी...कहना चाहता हूँ कि तुम्हारा चुपके से मेरे गाल पर किस करना बहुत अच्छा लगता था...कहना चाहता हूँ कि तुम मुझे बहुत याद आती हो...कहना चाहता हूँ कि तुम्हारी याद मुझे हँसा जाती है और फिर ना जाने क्यों रोने को मन करने लगता है...और ना जाने क्यों, ना चाहते हुए भी आँखों से आँसू छलक जाते हैं


ये जिंदगी बहुत खूबसूरत है...इसे ख़ुशी से जीना...चाहे मैं रहूँ या ना रहूँ...याद है तुमने ये बात जिस पहाडी के पत्थर पर बैठ मुझसे कही थी...उस पर ना जाने क्यों मैं दोबारा गया...वो मुझे वीरान सी जान पड़ी...बिल्कुल मेरी जिंदगी की तरह...बेरंग, बेजान, बेमतलब सी...और जब इस सोच से उबर कर खुद को देखा तो पाया कि मैं भीग चुका हूँ...उस बारिश में जो काफी देर से हो रही थी...कमाल है आज पहली बार ऐसा हुआ कि बारिश हुई और मुझे उसके बंद होने पर पता चला...याद है मुझे तुम्हें बारिश बहुत पसंद थी...है ना...क्या आज भी तुम्हें बारिश में भीगना पसंद है


किताबों के दरमियान रखे हुए उन सूखे गुलाबों की पंखुडियों को जब हाथ से स्पर्श करता हूँ...तो ये मुझे पुरानी यादों में लेकर चले जाते हैं...वो तुम्हारे नर्म हाथ और मखमली बाहें...जिनसे तुम मेरे सीने से लिपट जाया करती थीं...वो किताबें जो तुमने दी थीं वो उसमें लिखी हुई कहानी ना बोल कर हमारी अपनी कहानी कहने लग जाती हैं...कमबख्त ये भी नहीं समझती...कैसे समझेंगी तुम्हारे हाथों का स्पर्श जो है उस पर और जिसे तुमने चूम कर दिया था...हर वो किताब उतनी ही महफूज़ है मेरे पास ठीक तुम्हारी यादों की तरह...


ये जो आँखें हैं जिन्हें तुम अक्सर दो नैना कहा करती थीं...आज भी इक कहानी बसी हुई है इनमें...पता है किसकी और कौन सी कहानी...तेरे मेरे ख्वाबों की कहानी...तेरी मेरी ख्वाहिशों की कहानी...


हाँ जब तब इन दो नैनों में कभी बादल तो कभी पानी नज़र आ जाता है...और उसके साथ ही वो ख्वाहिशें और वो ख्वाब दोनों ही गीले हो जाते हैं


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