मौत ही भली
अपने मन को कैसे समझाउँ
जिसकी चाहत है प्यार ,
पर जिससे चाहता है उससे नही मिल पाता दुलार ,
और जिससे मिलता है उससे जुड़ने को
मन नही करता स्वीकार ,
इस कशमकश मे घुटता है मन
दिल हो जाता है जार जार ,
आँखें बरसती हैं रोती हैं बार बार ,
क्या करू क्या ना करू
नही समझ पात हैं हर बार ,
ऐसी ज़िंदगी से तो मौत ही भली
यही एहसास उमड़ते हैं , जब दिल हो
जाता है बेकरार...........
जिसकी चाहत है प्यार ,
पर जिससे चाहता है उससे नही मिल पाता दुलार ,
और जिससे मिलता है उससे जुड़ने को
मन नही करता स्वीकार ,
इस कशमकश मे घुटता है मन
दिल हो जाता है जार जार ,
आँखें बरसती हैं रोती हैं बार बार ,
क्या करू क्या ना करू
नही समझ पात हैं हर बार ,
ऐसी ज़िंदगी से तो मौत ही भली
यही एहसास उमड़ते हैं , जब दिल हो
जाता है बेकरार...........