Thursday, February 7, 2013

"मेरे हाथों की लकीरों मैं ये ऐब छुपा है

आज बहुत दिनो के बाद इस Blog पर कुछ लिख रहा हूँ, बहुत सारे ऐसे पल आए और गये की
जब इच्छा हुई की तुम्हे बताऊं की कैसे मैने तुम बिन अंश का जन्मदिन Celebrate किया,
कैसे मैने तुम्हारे जन्मदिन पर अकेले मैं तुम्हे याद किया, तुम बिन शिर्डी भी गया और वहाँ भी
तुम्हे बहुत मिस किया  विशाल की शादी मैं तुम्हारी बहुत याद आई, एक पल को लगता क़ि जैसे
तुम अभी आ जाओगी अपनी वही मुस्कराहट लेकर


कभी-कभी ज़िंदगी मे ये तय करना बड़ा मुश्किल हो जाता है क़ि ग़लत क्या है ???

"वो झूठ जो चेहरे पे मुस्कान लाए"
          या
"वो सच जो आँखों  मे आँसू लाए"
 मेरी परवाह मत करना,मेरी ज़िन्दगी की हर शाम बस यूँ ही गुजरेगी... सूरज की डूबती किरणों में ओझल हो जाएगी धीरे धीरे... लेकिन मैं जहाँ भी रहूँ, तुम्हें तोहफे में अपनी तन्हाई और तुम्हारी मुस्कान भेजा करूंगा...
"मेरे हाथों की लकीरों मैं ये ऐब छुपा है
में जिसे चाह लूँ वो मेरा नहीं रहता"