Friday, September 16, 2011

आज कनागत की चतुर्थी तिथी है

आज घर मैं सबकी आँख जल्दी ही खुल गयी थी श्वेता, पर कोई किसी से कुछ कह नही रहा था,  आज के दिन की वो मनहूस सुबह सबको याद थी , आज कनागत  की चतुर्थी तिथी है

आँख खुलते ही वही सब कुछ आँखों के सामने आने लगा जब हम हॉस्पीटल मैं थे डॉक्टर साहब सुबह राउंड पर आए थे तो तुमने उनसे कहा की मुझे . मैं बहुत . हो रहा है पर वो बोले चिंता मत करो सब ठीक  हो जाएगा और उन्होने तुम्हे एक गोली दे दी,  मैने तुम्हे सुबह ०६:४५ पर दूध पिलाया था, और तुमने सुबह ७:०० बजे इलाहाबाद भाभी से फ़ोन पर पूछा था कि मम्मी पापा  किस डिब्बे मैं बैठे है  बेचारी भाभी को क्या पता था कि वो तुमसे आख़िरी बार बात कर रही है , फिर हम दोनो बात करते रहे और तुमने मुझसे कहा की मैं आगरा कैंट जाकर मम्मी पापा को ले आऊ, मैने कहा भी की आयुष को बोल देता हूँ वो जाकर ले आएगा पर तुमने मुझे ही भेज दिया, ऐक दिन पहले तक तो तुम मुझे अपने से दूर नही जाने दे रही थी कह रही थी क़ि तुम बस मेरे पास ही बैठे रहो, शायद तुम्हे भी कुछ एहसास हो गया होगा इसीलिए तुमने खुद ही मुझे अपने से बहुत दूर कर दिया, जब मैं गया तब तुमने कहा मेरी चिंता मत करो, मैंने तुम्हारे माथे पर चूमा और चला गया

मैं स्टेशन चला गया ०७:४५ पर लेकिन मेरा दिल अजीब सा हो रहा था, स्टेशन पहूंचा तो गाड़ी लेट थी, मुझे बहुत बैचेनी हो रही थी तुम्हारे पास आने की एक पल को लगा की मैं उन्हे बगेर लिए ही लौट आऊ तभी अचानक विशाल का फोन आया ०८:१५ पर की जल्दी आजा भाभी की तबीयत अचानक बहुत बिगड़ रही है, मैं उन्हे बगेर लिए ही वहाँ से बापस भागा मुझे बहुत ज़ोर ज़ोर  से रोना आ रहा था मेरा दिल बैठा जा रहा था लगा की कुछ बहुत ग़लत हो गया है, आकर मैं सीधा  तुम्हारे कमरे मैं आया तो देखा तुम बेहोश थी, विशाल रो रहा था, जब डॉक्टर से मैने पूछा की क्या हुआ है तो उसने कहा की she is dead  मैं चक्कर खाकर उसके कॅबिन मैं ही गिर पड़ा, मैं उठा ओर आकर तुम्हे बहुत उठाया बहुत हिलाया, पानी डाला, अपनी नाक भी सिकोडी जिसे देखकर तुम अक्सर हंस जाया करती थी  पर तुम नही हँसी तुम बहुत मुझसे नाराज़ होकर बहुत दूर  चली थी,

अभी हमारा अंश ४ दिन का भी नही हुआ था, समझ नही आ रहा था की उसका क्या होगा ?
कुछ ही पलों मैं मेरी दुनिया ही उजड़ गयी, कई बार मैंने कोशिश भी की तुम्हारे पास आने की पर हमारे अंश की मासूम सूरत मेरे सामने आ जाती है,

आज बहुत कुछ बदल गया है श्वेता पर मैं तुम्हे मेरी आत्मा से प्यार करता रहूँगा . . .

जगजीत सिंह की ये ग़ज़ल मेरे ऊपर बिल्कुल  सही बैठती है

चिट्ठी ना कोई संदेश…
जाने वो कौन सा देश जहाँ तुम चले गये हो

इस दिल पे लगा के ठेस जाने वो कौन सा देश
जहाँ तुम चले गये हो

एक आह भरी होगी हमने ना सुनी होगी
जाते जाते तुमने आवाज़ तो दी होगी
हर वक़्त यही है गम, उस वक़्त कहा थे हम
कहाँ  तुम चले गये हो

चिट्ठी ना कोई संदेश… जाने
 वो कौन सा देश जहाँ तुम चले गये हो

हर चीज़ पे अश्कों से लिखा है तुम्हारा नाम
ये रास्ते घर गलियाँ तुम्हे कर ना सके सलाम
हाय दिल में रह गयी बात, जल्दी से छुड़ा कर हाथ
कहाँ  तुम चली गयी हो

चिट्ठी ना कोई संदेश…
जाने वो कौन सा देश जहाँ तुम चली गयी हो

अब यादों के काँटे इस दिल में चुभते हैं
ना दर्द  ठहरता है ना आँसू रुकते हैं
तुम्हे धूंड रहा है प्यार, हम कैसे करें इक़रार
कहा तुम चले गयेहो

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