"मेरे जीवन साथी"
हों तुम क्या मेरे लिए
कैसे बताऊँ,
मै तुमसे अब कैसे छुपाऊ
कुछ मैं आधा अधुरा हूँ
कुछ तुम पूरी - पूरी है,
फिर मै कैसे कहू की
ये तुम हो !
ये मै हूँ !
जब की हम एक है
गिर रही है बिजली
सागर में दूर कही,
उठ रही है तरंगे
मेरे मन में यहीं कही,
छा रहा है आँखों में नशा
तेरे खुमार का,
फिर मै कैसे कह दूँ
ये तुम हो !
ये मै हूँ !
जब की हम एक है
तुम बदले तो क्या बदले
पर्वतों के भी रंग
बदल गए,
पंछी ठहरे रात को
और दिन में मचल गए,
फिर मै कैसे कह दूँ की
ये तुम हो
ये मै हूँ
जब की हम एक है
गंगा -जल
मैला नहीं है आज भी,
न जाने कितनो ने,
इसमें डुबकी लगायी
वो तो तारनहार है,
तारेगी,
मेरे इस जीवन को ,
तुम तो सदियों से मेरी हों
जन्मो - जन्मो को तारोगी
फिर मै कैसे कह दूँ
की ये तुम हो
यें में हूँ
जब की हम एक है
"मेरे जीवन साथी"
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