तुम हो यहीं महसूस करताहूँ मैं, जीना पड़ रहा है तुम्हारे बिन .
शायद इसलिए हर पल किस्तो मे मर रहा हूँ मैं
सबके सामने हंसते हुए थक गया हूँ मैं
शायद इसलिए तन्हा होते ही आँखों मे नमी भर रहा हूँ मैं
काटे नही कटता ये वक़्त तेरे बगैर
शायद इसलिए जाल दोस्ती का अपने इर्द-गिर्द बुन रहा हूँ मैं
वक़्त क्या बदला हालात बदल जाते हैं
जो हैं साथ उनके ख़यालात बदल जाते हैं
झोखा हवा का जब भी छू कर जाता है लगता है की तुम हो
यही सोच कर रोज़ अपने आप को छल रहा हूँ मैं
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ज़िंदगी ने दिया कभी कुछ भी नही बस ले लिया थोड़ा बहुत जो था
रोज़ बस उन गुलाबो को काँटों मे से चुन रहा हूँ मैं
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