“कभी कभी मेरे दिल मॆं ख्याल आता है”
· कभी कभी मेरे दिल मॆं ख्याल आता है
की ज़िंदगी तेरी ज़ुल्फ़ों की नर्म छाओं में गुजरने पाती
तो शादाब हो भी सकती थी…
की ज़िंदगी तेरी ज़ुल्फ़ों की नर्म छाओं में गुजरने पाती
तो शादाब हो भी सकती थी…
ये रंज-ओ-गम की सियाही जो दिल पे छायी है
तेरी नज़र की शुओं मॆं खो भी सकती थी…
तेरी नज़र की शुओं मॆं खो भी सकती थी…
मगर ये हो ना सका और अब ये आलम है
की तू नहीं, तेरा गम तेरी जुस्तजू भी नहीं…
की तू नहीं, तेरा गम तेरी जुस्तजू भी नहीं…
गुजर रही है कुछ इस तरह ज़िंदगी जैसे,
इसे किसी के सहारे की आरजू भी नहीं…
इसे किसी के सहारे की आरजू भी नहीं…
ना कोई राह, ना मंज़िल, ना रौशनी का सुराग
भटक रहीं है अंधेरों मैं ज़िंदगी मेरी…
भटक रहीं है अंधेरों मैं ज़िंदगी मेरी…
इन्ही अंधेरों में रह जाऊँगा कभी खो कर
मैं जानता हूँ मेरी हमनफस , मगर यूंही
कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है…
मैं जानता हूँ मेरी हमनफस , मगर यूंही
कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है…
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